गांव के जमीन का पानी सरकारी सप्लाई के पानी से बेहतर क्यों? शहरों में टोटी के पानी में केमिकल की वजह से हो रहीं हैं बीमारियां

Why is groundwater better than government-supplied water?

गांव के जमीन का पानी, सरकारी सप्लाई के पानी से बेहतर क्यों होता है? Why is groundwater better than government-supplied water?

अगर आप किसी बड़े शहर जैसे दिल्ली, मुंबई, लखनऊ या बेंगलुरु में रहते हैं, तो आपके घर में शायद रोज़ सरकारी सप्लाई का पानी आता होगा। आप उसे फिल्टर कर के या उबाल कर पीते होंगे। लेकिन कभी आपने सोचा है कि जो पानी शहरों में सरकार सप्लाई कर रही है, वो कितना साफ या सुरक्षित है? और अगर गांवों में देखें, तो वहां लोग आज भी जमीन से निकला हुआ पानी (बोरिंग या कुएं का पानी) बिना किसी फिल्टर के पीते हैं, फिर भी अक्सर बीमार नहीं पड़ते।

तो सवाल उठता है कि क्या वाकई जमीन का पानी सरकारी सप्लाई के पानी से बेहतर है? चलिए इसे थोड़ा गहराई से समझते हैं।

शहरों का पानी इतना गंदा क्यों होता है?

मेट्रो शहरों की सबसे बड़ी समस्या है - जनसंख्या और प्रदूषण। जैसे-जैसे शहरों का विस्तार हुआ है, वहां की जमीन पर बोझ भी बढ़ा है। ज़्यादा लोग, ज़्यादा कूड़ा, ज़्यादा गाड़ियाँ, ज़्यादा इंडस्ट्री और उसी के साथ ज़्यादा गंदगी। और ये गंदगी सिर्फ ऊपर नहीं, नीचे जमीन में भी पहुंच चुकी है।

क्या होता है शहरों में?

  • शहरों में कूड़े के बड़े-बड़े पहाड़ हैं। बारिश होते ही ये गंदगी रिसकर जमीन के अंदर चली जाती है।
  • खुले नाले और सीवर लीकेज भी भूजल (groundwater) में मिल जाते हैं।
  • अवैध बोरवेल और ड्रेनेज सिस्टम से भी गंदा पानी जमीन में घुसता है।
  • शहरों में हर तरफ कंक्रीट (सीमेंट, रोड्स, बिल्डिंग्स) की सतह है, जिससे बारिश का पानी जमीन में रिस ही नहीं पाता। नतीजा – जमीन का पानी रिचार्ज नहीं होता और जो होता है वो भी बहुत गंदा होता है।


अब आप सोचेंगे कि चलो ठीक है, सरकारी सप्लाई का पानी तो फिल्टर होकर आता है, वो तो साफ होना चाहिए?

सरकारी सप्लाई का पानी भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं होता

शहरों में जो पानी हमारे घरों तक आता है, वो आमतौर पर नदियों, झीलों या कभी-कभी नालों से उठाया जाता है। इसे ट्रीटमेंट प्लांट में ले जाकर केमिकल से साफ किया जाता है – क्लोरीन, एलम और अन्य रसायन मिलाकर। फिर यह पानी पाइपलाइनों के ज़रिए आपके घर तक पहुंचता है।

लेकिन समस्याएं यहां भी हैं:

  • फिल्टरिंग प्रोसेस में जो केमिकल डाले जाते हैं, वो लंबे समय तक शरीर में जाकर नुकसान पहुंचाते हैं।
  • शहरों की पानी की पाइपलाइनें बहुत पुरानी और जंग खाई हुई होती हैं। कई बार इनमें लीकेज होता है और गंदा पानी अंदर मिल जाता है।
  • बिल्डिंग की पानी की टंकियां अगर समय-समय पर साफ नहीं की जातीं, तो उसमें भी पानी गंदा हो जाता है।
  • सबसे बड़ी बात – इस पूरी सप्लाई चेन में कई जगह लापरवाही होती है। कई बार ट्रीटमेंट प्लांट्स में पानी सही से साफ नहीं किया जाता, और कई जगह जांच का कोई सिस्टम ही नहीं होता।

तो कुल मिलाकर, जो पानी आप शहर में पी रहे हैं, वो चाहे ट्रीटेड हो, फिल्टर किया हुआ हो - लेकिन भरोसेमंद नहीं है।

अब बात करते हैं गांव के पानी की - 

क्यों है वो ज्यादा बेहतर?

गांवों में जब आप नल या हैंडपंप का पानी पीते हैं तो वो ना सिर्फ मीठा होता है, बल्कि ठंडा और साफ भी महसूस होता है। और मजे की बात यह है कि वहां के लोग दशकों से वही पानी पीते आ रहे हैं – बिना RO, बिना UV फिल्टर के - और फिर भी बीमार नहीं पड़ते।


इसके पीछे कई वजहें हैं:

  • गांवों में जमीन खुली होती है, मिट्टी और पेड़-पौधे बारिश के पानी को अपने में समा लेते हैं। यह पानी धीरे-धीरे फिल्टर होता हुआ जमीन के नीचे पहुंचता है और प्राकृतिक रूप से साफ हो जाता है।
  • वहां न तो भारी वाहन होते हैं, न कारखाने, और न ही कचरे के पहाड़ – मतलब प्रदूषण बहुत कम।
  • गांवों में कई जगह अब भी तालाब, झीलें, और कुंए हैं, जो आसपास की जमीन को नम और स्वच्छ रखते हैं।
  • जनसंख्या का दबाव भी बहुत कम होता है, जिससे भूजल पर बोझ नहीं पड़ता।

इसका असर दिखता है – गांवों में लोग पानी से जुड़ी बीमारियों से कम ग्रस्त होते हैं।

पानी का असर सेहत पर कैसे पड़ता है?

पानी में अगर हानिकारक तत्व हों – जैसे लेड, आर्सेनिक, नाइट्रेट, कीटाणु – तो यह सीधा हमारे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों पर असर डालता है। खासकर:

  • किडनी और लीवर डैमेज: दूषित पानी में मौजूद भारी धातुएं धीरे-धीरे शरीर में जमा होती जाती हैं और लीवर व किडनी को नुकसान पहुंचाती हैं।
  • त्वचा और पेट की बीमारियां: जैसे एलर्जी, रैशेज़, दस्त, उल्टी, गैस्ट्रिक इंफेक्शन आदि।
  • जलजनित रोग: कॉलरा, टायफॉइड, हेपेटाइटिस A और E, डायरिया – ये सब गंदे पानी से ही फैलते हैं।

अब आप समझ सकते हैं कि सिर्फ पानी का रंग साफ होना काफी नहीं है, उसकी अंदरूनी गुणवत्ता ज्यादा मायने रखती है।

निष्कर्ष: पानी चुनते वक्त आंखें बंद न करें

कई लोग मानते हैं कि सरकारी सप्लाई का पानी तो फिल्टर होकर आता है, इसलिए वह पूरी तरह सुरक्षित है। लेकिन सच्चाई ये है कि पानी की सुरक्षा सिर्फ उसके स्रोत पर नहीं, बल्कि उसकी पूरी यात्रा पर निर्भर करती है – स्रोत से लेकर आपके गिलास तक।

गांव का पानी अक्सर प्राकृतिक और स्वच्छ होता है, जबकि शहरों का पानी चाहे जितना भी फिल्टर हो, उसमें मानवीय लापरवाही और प्रदूषण का खतरा हमेशा बना रहता है।

इसलिए पानी का चुनाव सोच-समझकर करें। ये केवल प्यास बुझाने का ज़रिया नहीं - ये आपके स्वास्थ्य से जुड़ा मामला है।


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Himanshu Yadav

He is certified medical nutritionist from Lincoln University Malaysia. He also worked for hospital and healthcare in radiology department. At hospital he observed that the doctors do not recommend diet and lifestyle modification even in simple diseases, that bring author to understand Nutrition, Natural science and Ayurvedic science. He loves to read and write about health and wellness. He is also passionate to treat diseases with out harmful drugs.

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